प्रेग्नेंसी में देखभाल कैसे करें? - Pregnancy Care Tips in Hindi

प्रेग्नेंसी में देखभाल कैसे करें? - Pregnancy Care Tips in Hindi

गर्भावस्था लगभग चालीस हफ़्तों की एक अवधि है जिसके दौरान महिला के गर्भ में भ्रूण विकसित होता है। अंडाशय में बना अंडा पुरुष के शुक्राणु द्वारा निषेचित (फर्टिलाइज) होता है, इसके बाद ही कोई महिला गर्भ धारण करती है। अंडे और शुक्राणु के मेल की प्रक्रिया को फर्टिलाइजेशन कहते हैं। एक बार जब इम्प्लांटेशन (अंडा निषेचित होने के बाद पोषण के लिए जब गर्भाशय की दीवार में चिपक जाता है) हो जाता है तो गर्भवस्था या प्रेगनेंसी की शुरुआत होती है।

चूंकि यह पता लगाना बहुत मुश्किल है कि कौन से दिन अंडा फर्टिलाइज हुआ है इसीलिए पिछले मासिक धर्म के आखिरी दिन को ही गर्भावस्था की शुरुआत माना जाता है। गायनोकोलॉजिस्ट इस दिन में चालीस हफ्ते या 280 दिन जोड़ कर शिशु के पैदा होने की संभावित तारीख देते हैं।

एक बार जब प्रेगनेंसी की पुष्टि हो जाती है तो किसी भी तरह की जटिलताएं या खतरे जैसे गर्भपात, प्लेसेंटल अब्रप्शन आदि पैदा न हो इसके लिए सही प्री-नेटल (जन्म से पहले) केयर की जानी चाहिए। प्रत्येक गर्भवती महिला को गर्भवस्था के दौरान नियमित चेक अप करवाने होते हैं। ये चेक अप यह जानने के लिए किए जाते हैं कि गर्भ में भ्रूण किस तरह पल रहा है और उसे विशेष देख-रेख की जरूरत है या नहीं। गर्भवती महिला को बहुत सारी वैक्सीनेशन लेनी होती हैं इसके साथ ही उन्हें इस दौरान विटामिन व मिनरल के सप्लीमेंट लेने के लिए भी कहा जाता है।

मां और शिशु के अच्छे स्वास्थ्य व शिशु के अच्छे विकास के लिए गर्भावस्था के दौरान महिला को संतुलित प्रेगनेंसी डाइट और एक्सरसाइज रूटीन का पालन करना चाहिए। यदि गर्भावस्था में किसी भी तरह की जटिलता नहीं है तो महिला की सामान्य वजाइनल डिलीवरी की जा सकती है। यदि गर्भ ठीक तरह से धारण नहीं हुआ है या प्री मेच्योर है या फिर किसी अन्य तरह की जटिलता है तो सिजेरियन या सी-सेक्शन डिलीवरी की जाएगी।

चलिए गर्भावस्था के बारे में और विस्तार से जानते हैं।

  1. प्रेग्नेंट कैसे होते हैं?
  2. प्रेग्नेंसी के लक्षण क्या होते हैं?
  3. प्रेगनेंसी का पता कैसे लगाएं?
  4. प्रेग्नेंसी के पहले तीन महीने में क्या होता है?
  5. प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही में क्या होता है?
  6. प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही में क्या होता है?
  7. प्रेग्नेंसी में क्या क्या परेशानियाँ होती हैं?
  8. प्रेग्नेंसी में चेकअप कैसे करते हैं?
  9. प्रेग्नेंसी में वैक्सीन कब लगती है?
  10. प्रेग्नेंसी में क्या खाएँ ? क्या न खाएँ
  11. लेबर पेन कब शुरू होता है?

प्रेग्नेंट कैसे होते हैं?

गर्भ धारण करने के लिए सबसे पहले आपको ओवुलेशन के बारे में पता होना चाहिए। हां! ये सही है कि गर्भवती होने के लिए पहले संभोग जरूरी है लेकिन इसमें सही समय और तकनीक ज्यादा जरूरी है इसीलिए ओवुलेशन को समझना महत्वपूर्ण हो जाता है।

ओवुलेशन महीने का वह समय है जब किसी भी महिला का अंडाशय अंडे स्त्रावित करता है। इसके बाद अंडे फेलोपियन ट्यूब से हो कर गर्भाशय में जाते हैं, जहां वे शुक्राणु द्वारा फर्टिलाइज होते हैं। फर्टिलाइजेशन को आसान बनाने के महिला के शरीर में एस्ट्रोजन व प्रोजेस्टेरोन हार्मोन स्त्रावित होते हैं जो गर्भावस्था की दीवार पर एक परत बना देते हैं जिससे गर्भ धारण करने के लिए अनुकूल वातावरण बन जाता है।

यदि फर्टिलाइजेशन होता है तो गर्भाशय में बनी परत अंडे को गर्भ से जुड़ने में मदद करेगी। यदि फर्टिलाइजेशन नहीं होता है तो अंडा प्राकृतिक रूप से नष्ट हो जाएगा और गर्भाशय में बनी यह परत भी टूट जाएगी जिससे आपको पीरियड्स हो जाएंगे। पूरे महीने यही प्रक्रिया बार-बार चलती रहती है।

चूंकि ओवुलेशन हर महीने सिर्फ पांच से छह दिनों के लिए होता है तो यह जरूरी है कि इस दौरान आप ज्यादा बार सेक्स करें ताकि गर्भवती होने की संभावना को बढ़ाया जा सके। चूंकि शुक्राणु महिला के शरीर में सात दिनों तक सक्रीय रहते हैं तो अगर आप आपने ओवुलेशन से पहले सेक्स किया है तो हो सकता है कि आप गर्भवती हो जाएं। यदि आप गर्भ धारण करना चाहती हैं तो निम्न बातों पर विशेष ध्यान दें -

महिलाओं के स्वास्थ के लिए लाभकारी , एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे हार्मोंस को कंट्रोल करने , यूट्रस के स्वास्थ को को ठीक रखने , शरीर के विषाक्त पदार्थों को बाहर निकाल कर सूजन को कम करने में लाभकारी माई उपचार आयुर्वेद द्वारा निर्मित अशोकारिष्ठ का सेवन जरूर करें ।

प्रेग्नेंसी के लक्षण क्या होते हैं?

बहुत सारी महिलाएं खासतौर पर वे महिलाएं जो गर्भवती होने का प्रयास नहीं कर रही हैं वे भी अपनी प्रेगनेंसी के बारे में जानकर चकित हो जाती हैं। इसीलिए शरीर में हो रहे बदलावों पर ध्यान दें क्योंकि गर्भावस्था के सबसे सामान्य लक्षण यही हैं। यदि कोई महिला गर्भवती है तो सबसे पहले निम्न लक्षण दिखाई देते हैं -

Women Health Supplements_0

Women Health Supplements_1

Women Health Supplements_2

Women Health Supplements_3

Women Health Supplements_4

Women Health Supplements_5

Women Health Supplements_6

Women Health Supplements_7

Women Health Supplements_8

Women Health Supplements_9

Women Health Supplements_10

₹719 ₹799 10% छूट

प्रेगनेंसी का पता कैसे लगाएं?

यदि पीरियड्स न होने की वजह से आपको संदेह है कि आप गर्भवती हैं तो इसकी पुष्टि करने का सबसे अच्छा तरीका प्रेगनेंसी टेस्ट है। आप लैब में जा कर टेक्नीशियन से ये करने के लिए कह सकती हैं या फिर बाजार से प्रेगनेंसी टेस्ट किट ले कर आप यह टेस्ट घर पर भी कर सकती हैं।

होम प्रेगनेंसी टेस्ट बाजार में आसानी से मौजूद होते हैं। ये सस्ते होने सस्ते होने के साथ-साथ प्रयोग में आसान भी होते हैं। सभी प्रेगनेंसी टेस्ट ह्यूमन गोनाडोट्रोपिन (एचसीजी) नामक हार्मोन की मात्रा का पता लगाता है। अंडे के फर्टिलाइज होने के छह दिनों में ही यह हार्मोन शरीर में बनने लग जाता है।

होम प्रेगनेंसी टेस्ट में केवल आपको स्टिक पर पेशाब की कुछ बूंदें डालनी है और परिणाम का इंतजार करना है। टेस्ट के परिणाम अलग-अलग तरह से आ सकते हैं। ऐसे में निर्देशों को ठीक तरह से पढ़ना जरूरी होता है। पॉजिटिव परिणाम आमतौर पर सही होते हैं लेकिन अगर आपके परिणाम नेगेटिव आए हैं तो बेहतर है कि आप एक और टेस्ट कर के इसकी पुष्टि कर लें।

यदि अन्य टेस्ट के परिणाम भी नेगेटिव आते हैं लेकिन अभी भी आपको पीरियड्स नहीं हुए हैं तो डॉक्टर से मिलें।

प्रेग्नेंसी के पहले तीन महीने में क्या होता है?

गर्भावस्था के एक से बारह हफ्ते की अवधि को पहली तिमाही कहा जाता है। हालांकि अधिकतर महिलाओं को पांचवें से सातवें हफ्ते तक पता नहीं चल पाता है कि वे गर्भवती हैं। गर्भवती होने की सटीक गणना पीरियड के आखिरी दिन से शुरू होती है। इस दौरान गर्भपात की आशंका सबसे अधिक होती है इसीलिए इस समय ज्यादा ध्यान रखने की जरूरत होती है।

महिला का शरीर पूरी गर्भावस्था के लिए पहली तिमाही में तैयार हो रहा होता है। गर्भाशय भ्रूण को अंदर रखने के लिए बड़ी होने लगती है, गर्भाशय तक पोषण पहुंचाने के लिए गर्भनाल विकसित होने लगती है। इसके अलावा हार्मोन व रक्त की मात्रा दोगुनी हो जाती है और बहुत अधिक वजन बढ़ जाता है।

पहली तिमाही में शिशु बहुत तेजी से विकसित होता है। इस दौरान शिशु की स्पाइनल कॉर्ड, मस्तिष्क व अन्य अंग बनते हैं और इसके अंत तक अल्ट्रासाउंड में आप शिशु के हृदय की धड़कन भी सुन सकती हैं।

प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही में क्या होता है?

गर्भावस्था के 13 से 27 हफ्ते की अवधि को पहली तिमाही कहा जाता है। इस तिमाही के दौरान गर्भवती महिला को ऐसा महसूस होता है जैसे शिशु उनके गर्भ में हिल-डुल रहा है। जिसका मतलब है कि गर्भ में शिशु ठीक तरह से पल रहा है। इस तिमाही में भी प्री नेटल केयर चलती रहनी चाहिए, विशेषकर अगर आप मल्टीपल प्रेगनेंसी या जुड़वां शिशुओं को जन्म देने वाली हैं।

18वे से 20वे हफ्ते में शिशु के विकास पर नजर रखने के लिए अल्ट्रासाउंड किया जाता है। यह जरूरी है कि गर्भावस्था में अगर किसी भी तरह की कोई जटिलता है या शिशु को कोई जन्मजात विकार है तो इसके बारे में दूसरी तिमाही के शुरुआत में पता चल जाए। ऐसा इसीलिए क्योंकि इससे मां सही तरह से सोच कर गर्भावस्था को आगे बढ़ा पाएगी और डॉक्टरों को भी जटिलताओं का इलाज करने में मदद मिलेगी।

यह भी याद रखना जरूरी है कि भले ही अभी 23 हफ़्तों के बाद शिशु यूटरो (गर्भ के बाहर जीवित रह सकता है) माना जाता है लेकिन जितना अधिक समय तक शिशु गर्भ में रहेगा उतना अधिक उसके जीने की संभावना होती है और स्वास्थ्य समस्याएं होने का खतरा कम हो जाता है।

Pushyanug Churna_0

Pushyanug Churna_1

Pushyanug Churna_2

Pushyanug Churna_3

Pushyanug Churna_4

Pushyanug Churna_5

Pushyanug Churna_6

Pushyanug Churna_7

Pushyanug Churna_8

₹450 ₹499 9% छूट

प्रेग्नेंसी की तीसरी तिमाही में क्या होता है?

गर्भावस्था के 28 से 40 हफ्ते की अवधि को पहली तिमाही कहा जाता है। इस हफ्ते तक आपका वजन और अधिक बढ़ गया है और अब आप पहले से ज्यादा थका हुआ महसूस कर रही होंगी। यह जरूरी है कि इस दौरान आप पर्याप्त आराम लें ताकि शिशु गर्भ में सुरक्षित रहे।

शिशु की हड्डियां नाजुक हैं लेकिन इस समय तक पूरी तरह बन चुकी हैं। इस समय तक शिशु रौशनी को महसूस कर सकता है और अपनी आंखें खोल कर बंद भी कर सकता है। अगर सब कुछ सही रहता है तो इस तिमाही के अंत तक आप और आपका शिशु वजाइनल डिलीवरी के लिए तैयार हो जाएगा।

यह ध्यान रखना जरूरी है कि 37वे हफ्ते में जन्मे हुए शिशु को प्री मेच्योर कहा जाता है। ऐसे शिशुओं में कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली होने का और देरी से विकास का खतरा होता है। 39वे और 40वे हफ्ते में जन्मे शिशुओं को “फुल टर्म” बेबी कहा जाता है और ये अधिक स्वस्थ होते हैं।

प्रेग्नेंसी में क्या क्या परेशानियाँ होती हैं?

ऐसी बहुत सारी महिलाएं हैं जो गर्भावस्था के इस दौर को बिना किसी समस्या के पार कर जाती हैं। हालांकि ऐसी बहुत सी अन्य महिलाएं हैं जिनकी प्रेगनेंसी अपने या शिशु के स्वास्थ्य में समस्या होने के कारण मुश्किल हो जाती हैं। हालांकि गर्भवती होने से पहले यदि ठीक तरह से पूर्वोपाय (जैसे धूम्रपान न करना या शराब न पीना और संतुलित आहार लेना) किए जाए तो ऐसी समस्याओं की संभावना को कम किया जा सकता है। जो महिलाएं गर्भवती होने से पहले स्वस्थ थी उनकी प्रेगनेंसी में भी समस्याएं हो सकती हैं।

ऐसी गर्भावस्थाओं को हाई-रिस्क प्रेगनेंसी कहा जाता है। ऐसे में मां और शिशु दोनों को ठीक रखने के लिए अधिक प्री नेटल केयर, मेडिकल ट्रीटमेंट और यहां तक कि सर्जरी भी की जा सकती है। गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिलाओं को निम्न समस्याएं हो सकती हैं।

उच्च रक्तचाप

हाइपरटेंशन या उच्च रक्तचाप एक स्थिति है जो कि शिशु के स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है। उच्च रक्तचाप की वजह से गर्भनाल में रक्त का प्रवाह कम हो सकता है। गर्भनाल शिशु को गर्भ में पोषण और ऑक्सीजन पहुंचाती है। गर्भनाल तक रक्त का कम प्रवाह शिशु के विकास को धीमा कर सकता है। इसके अलावा, इससे प्री मेच्योर डिलीवरी या मां में प्री-एक्लेम्पसिया स्थिति पैदा हो सकती है।

जिन महिलाओं को गर्भवती होने से पहले उच्च रक्तचाप था उन्हें गर्भावस्था के दौरान बार-बार जांच करवानी चाहिए। यदि महिला को गर्भवती होने के बाद उच्च रक्तचाप होता है तो इस स्थिति को जेस्टेशनल हाई ब्लड प्रेशर कहा जाता है। जेस्टेशनल हाई ब्लड प्रेशर दूसरी या तीसरी तिमाही के दौरान होता है और प्रसव के बाद स्वयं ही ठीक हो जाता है।

जेस्टेशनल डायबिटीज

किसी महिला को गर्भवती होने के बाद शुगर समस्या या डायबिटीज हो तो इस स्थिति को जेस्टेशनल डायबिटीज कहा जाता है। पैंक्रियास इन्सुलिन नामक एक हार्मोन स्त्रावित करते हैं जो ग्लूकोज को तोड़कर ऊर्जा के रूप में कोशिकाओं तक पहुंचाता है। गर्भावस्था में हो रहे हार्मोनल बदलावों के कारण ऐसा हो सकता है कि शरीर में पर्याप्त इन्सुली न बने या शरीर में उसका उपयुक्त तरह से प्रयोग न हो पाए। इससे रक्त में ग्लूकोज का जमाव बढ़ सकता है। रक्त में ब्लड शुगर लेवल बढ़ने से जेस्टेशनल डायबिटीज की स्थिति पैदा हो सकती है।

यदि आपको जेस्टेशनल डायबिटीज है तो यह जरूरी है कि आप डॉक्टर द्वारा सुझाया गया ट्रीटमेंट करवाएं। इन ट्रीटमेंट को करवाना जरूरी इसलिए होता है क्योंकि न करवाने पर प्री मेच्योर बर्थ जैसी स्थितियां पैदा हो सकती है

संक्रमण

यदि गर्भावस्था के दौरान मां को किसी भी तरह का संक्रमण जैसे बैक्टीरियल इन्फेक्शन, वायरल इन्फेक्शन, फंगल इन्फेक्शन या फिर एसटीडी होते हैं तो इससे माता और शिशु दोनों के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ सकता है। ये सभी भ्रूण में जा सकते हैं और स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इनमें से कई संक्रमणों का इलाज गर्भावस्था के दौरान या उससे पहले किया जा सकता है।

अपने शरीर में संक्रमणों की जांच करवाना और उनके प्रति सही पूर्वोपायों को अपनाना जरूरी है क्योंकि इससे गर्भपात, एक्टोपिक प्रेगनेंसी, समय से पहले डिलीवरी,जन्मजात विकार समस्याएं हो सकती हैं। इन संक्रमणों के बारे में आपको डॉक्टर से बात करनी चाहिए और अगर आपको यह होने का खतरा है तो ट्रीटमेंट और वैक्सिनेशन लेनी चाहिए।

गर्भपात

गर्भपात का मतलब है भ्रूण की गर्भवस्था के बीसवें हफ्ते में स्वयं ही मृत्यु हो जाना। ऐसा कई सारे कारणों से हो सकता है जैसे संक्रमण, इम्यून सिस्टम की प्रतिक्रिया और यूटेरिन असामान्यता। यदि आप शराब पीती हैं या धूम्रपान करती हैं तो गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है। व्यायाम कम करने, तनाव में रहने और अत्यधिक कैफीन के सेवन से भी गर्भपात हो सकता है।

गर्भपात के लक्षणों में योनि से खून आना, पेट में ऐंठन, वजाइनल डिस्चार्ज आदि शामिल हैं। एक बार शुरू होने के बाद गर्भपात को वापस ठीक नहीं किया जा सकता है। गर्भपात या मिसकैरेज किसी भी महिला के लिए बहुत दुखदायी हो सकता है। इसके अलावा यदि आपका पहले भी मिसकैरेज हुआ है या आपकी जीवनशैली में धूम्रपान व शराब जैसी आदतें हैं तो इनके कारण भी गर्भपात का खतरा अधिक बढ़ जाता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप फिर से गर्भ धारण नहीं कर सकती हैं। इस समय बेहतर यह है कि आप घरवालों का और दोस्तों का भावनात्मक रूप से सहारा लें और स्वयं को मानसिक रूप से मजबूत रखें।

एक्टोपिक प्रेगनेंसी

आमतौर पर एम्ब्रयो गर्भ में फर्टिलाइज होता है लेकिन अगर यह निषेचन फेलोपियन ट्यूब्स में होता है तो इस स्थिति को एक्टोपिक प्रेगनेंसी या ट्यूबल प्रेगनेंसी कहते हैं। ऐसे में एक्टोपिक प्रेगनेंसी के लक्षणों को पहचानना जरूरी हो जाता है। इस लक्षणों में पेट दर्द, श्रोणि में दर्द, रक्तस्त्राव, जी मिचलाना और मल त्यागने की इच्छा होना शामिल हो सकते हैं।

एक्टोपिक प्रेगनेंसी को सामान्य तरह से जारी रखना असामान्य है इसलिए आपको इसका ट्रीटमेंट मेडिकल रूप से या सर्जरी से करवाना होगा। कुछ मामलों में यदि समय पर जांच नहीं की जाती है तो एक्टोपिक प्रेगनेंसी से फेलोपियन ट्यूब्स फट सकती हैं जो कि प्राण घातक हो सकता है। तो अगर आपको एक्टोपिक प्रेगनेंसी के कोई भी लक्षण दिखाई देते हैं तो इनके बारे में डॉक्टर को बताएं और तुरंत अस्पताल जाएं।

समय से पहले प्रसव

यदि गर्भावस्था का दर्द 37वें हफ्ते में शुरू हो जाता है तो इसे प्री मेच्योर लेबर कहा जाता है। जो शिशु प्री मेच्योर लेबर में पैदा होते हैं उन्हें आमतौर पर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं और इसके अलावा जन्म के बाद धीमा विकास हो सकता है। गर्भावस्था के आखिरी हफ्तों में मस्तिष्क और फेफड़े का विकास पूरा होने पर यह स्थिति पैदा होती है।

समय से पहले प्रसव आमतौर पर माता की जीवनशैली में खराबी, जन्म से पूर्व खराब पोषण, धूम्रपान, शराब का सेवन, यूटेरिन असमान्यता और संक्रमणों के कारण हो सकता है। प्रोजेस्टेरोन हार्मोन के कम स्तर से भी प्री मेच्योर लेबर हो सकता है इसलिए जिन महिलाओं को खतरा होता है, उन्हें प्रोजेस्टेरोन हार्मोन से ही ट्रीट किया जाता है ताकि डिलीवरी जब तक सुरक्षित न हो तब तक टाली जा सके।

शिशु का मृत पैदा होना (स्टिल बर्थ)

‘स्टिल बर्थ’ का मतलब है गर्भावस्था के 20 हफ्ते में गर्भावस्था खत्म होना या शिशु का मृत पैदा होना। इस शब्द का प्रयोग उन शिशुओं के लिए भी किया जाता है जिनकी मृत्यु प्रसव के दौरान होती है। बहुत सारे स्टिल बर्थ कई अनजान कारणों से होते हैं और इन्हें अनएक्सप्लेंड स्टिल बर्थ कहा जाता है। धूम्रपान, शराब, गर्भावस्था के लिए अधिक उम्र और मेडिकल स्थितियां जैसे डायबिटीज और मोटापे से स्टिल बर्थ का खतरा बढ़ जाता है। यह माता-पिता को मानसिक व भावनात्मक रूप से बहुत सदमा पहुंचा सकता है इसलिए माता-पिता को इस दौरान काउंसलिंग लेनी चाहिए।

प्रेग्नेंसी में चेकअप कैसे करते हैं?

गर्भावस्था की पहली तिमाही में माता और पिता दोनों का पूरा हेल्थ चेक अप किया जाना बहुत जरूरी है। गर्भावस्था के दौरान शिशु न केवल माता से पोषण लेता है बल्कि उसमें माता व पिता दोनों के जीन भी जाते हैं। चूंकि यह शिशु के लंबे विकास में महत्वपूर्ण है इसीलिए रूटीन टेस्ट और स्क्रीनिंग बहुत जरूरी है।

इन टेस्ट और स्क्रीनिंग में टोटल ब्लड काउंट, यूरिन एनालिसिस, हेपेटाइटिस,एसटीआई और एचआईवी/एड्स के लिए टेस्ट शामिल हैं। टेस्ट जैसे प्रेगनेंसी-एसोसिएटेड प्लाज्मा प्रोटीन टेस्ट (पीएपीपीए) और ह्यूमन गोनाडोट्रोपिन टेस्ट किसी भी क्रोमोसोनल असामान्यता की जांच करने के लिए किया जाता है। भ्रूण के विकास की जांच करने के लिए और यह पुष्ट करने के लिए शिशु को कोई असामान्यता नहीं है अल्ट्रासाउंड और नचल ट्रांसलुएंसी स्कैन किए जाते हैं।

प्रेग्नेंसी में वैक्सीन कब लगती है?

गर्भावस्था में माता की प्रतिरक्षा प्रणाली एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है क्योंकि इस पर शिशु का स्वास्थ्य निर्भर करता है। गर्भावस्था के दौरान माता की प्रतिरक्षा प्रणाली शिशु की रक्षा करती है और जन्म के बाद भी जब तक शिशु को बाहर से वैक्सिनेशन नहीं मिलने लगता तब तक स्तनपान के द्वारा भी शिशु की रक्षा की जाती है।

इसलिए यह जरूरी है कि मां सभी जरूरी वैक्सिनेशन समय पर ले ले। डॉक्टर द्वारा बताए गए सभी चेक अप और स्क्रीनिंग करवाएं और उनके के परिणामों के आधार पर जरूरी वैक्सीन लें। यह ध्यान रखना जरूरी है कि फ्लू, टिटनेस, डिप्थीरिया और खांसी के लिए वैक्सीन सभी गर्भवती महिलाओं को दी जाती है।

(और पढ़ें - गर्भावस्था के दौरान टीकाकरण चार्ट)

myUpchar के डॉक्टरों ने अपने कई वर्षों की शोध के बाद आयुर्वेद की 100% असली और शुद्ध जड़ी-बूटियों का उपयोग करके myUpchar Ayurveda Prajnas Fertility Booster बनाया है। इस आयुर्वेदिक दवा को हमारे डॉक्टरों ने कई लाख पुरुष और महिला बांझपन की समस्या में सुझाया है, जिससे उनको अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं।

Fertility Booster_0

Fertility Booster_1

Fertility Booster_2

Fertility Booster_3

Fertility Booster_4

Fertility Booster_5

Fertility Booster_6

Fertility Booster_7

Fertility Booster_8

₹899 ₹999 10% छूट

प्रेग्नेंसी में क्या खाएँ ? क्या न खाएँ

गर्भावस्था के दौरान पोषण की सही मात्रा को बनाए रखने के लिए एक संतुलित आहार जरूरी होता है ऐसा स्वयं को ठीक रखने के लिए और विकसित हो रहे शिशु सही पोषण देने के लिए होता है। इसलिए एक संतुलित प्रेगनेंसी डाइट बनाना जिसमें पर्याप्त मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, और खनिज शामिल हो जरूरी हो जाता है।

जब गर्भावस्था में पोषण की बात आती है तो पानी को अधिक महत्व नहीं दिया जाता है लेकिन पानी की कमी से गंभीर जटिलताएं हो सकती है इसलिए पर्याप्त पानी पीना बहुत जरूरी होता है। गर्भावस्था के दौरान आपके शरीर को बहुत सारे विटामिन और खनीजों की जरूरत होती हैं इनमें आयरन और फोलेट भी शामिल है जो कि सभी गर्भवती महिलाओं को लेना चाहिए।

लेबर पेन कब शुरू होता है?

गर्भाशय की मांसपेशियों के संकुचित होना यह संकेत देता है कि आपका शरीर लेबर और शिशु की डिलीवरी के लिए तैयार है। गर्भावस्था के चौथे महीने के बाद आपको संकुचन महसूस हो सकता है जो कि लगातार या बार-बार नहीं होगा और इनसे अधिक दर्द भी नहीं होगा। इन्हें ब्रेक्सटन-हिक्स कॉन्ट्रेक्शन या फाल्स लेबर कहा जाता है।

यदि आपको 37 हफ्ते से पहले कॉन्ट्रेक्शन हो रहे हैं और ये बार-बार हो रहा है व इनमें अधिक दर्द भी हो रहा है तो यह प्री मेच्योर लेबर का संकेत हो सकता है। यदि आपको यह संकेत दिखाई दे रहे हैं तो जल्दी से डॉक्टर से मिलें या तुरंत अपने नज़दीकी अस्पताल में जाएं।

लेबर कॉन्ट्रेक्शन दो तरह के होते हैं - जल्दी होने वाले लेबर कॉन्ट्रेक्शन (जो केवल पांच मिनट तक होता है) और एक्टिव लेबर कॉन्ट्रेक्शन (जो बार-बार होते हैं और तीव्र दर्द होता है) । इस दौरान गर्भाशय ग्रीवा खुलने लगती है और जब यह होता है तो आपको योनि से रक्त जैसा डिस्चार्ज दिखाई दे सकता है।

एक बार गर्भाशय ग्रीवा ठीक तरह से खुल जाती है तो उसका मतलब है कि आपका शरीर डिलीवरी के लिए तैयार है। यदि यह नहीं होता है या किसी तरह की कोई समस्या है तो आपकी सी-सेक्शन या सिजेरियन डिलीवरी की जा सकती है।

डिलीवरी के दौरान दर्द को नियंत्रित करना जरूरी होता है क्योंकि लेबर के दौरान बहुत तीव्र दर्द होता है। बहुत सी महिलाओं को दर्द नियंत्रण करने के लिए एनेस्थीसिया और एनालेजिक्स जैसे एपिड्यूरल दिए जाते हैं लेकिन बहुत सी महिलाएं इस दौरान मेडिटेशन, योगा और म्यूजिक थेरेपी का प्रयोग करती हैं।

(और पढ़ें - प्रसव पीड़ा)